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Posted 4 hours ago

बिहार चुनाव 2025 के लगभग सभी नतीजों के बाद स्पष्ट हो गया है कि एनडीए गठबंधन बड़ी जीत की ओर बढ़ रहा है। इस चुनाव में एनडीए—जिसमें JDU, BJP, LJP और HAM शामिल हैं—और महागठबंधन—RJD, कांग्रेस, VIP, वाम दल और IIP—के बीच सीधी टक्कर थी। अब चर्चा इस बात की भी है कि भारत में सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने वाले नेताओं की सूची में नीतीश कुमार का स्थान कहां है। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार नीतीश कुमार अब तक 18 साल 347 दिन बिहार के मुख्यमंत्री रह चुके हैं, जबकि भारत में सबसे लंबा कार्यकाल सिक्किम के पवन कुमार चामलिंग का है, जिन्होंने 24 साल 165 दिन सत्ता संभाली। अगर नीतीश कुमार 2025 में दोबारा मुख्यमंत्री बनते हैं, तो भी इस रिकॉर्ड को तोड़ने के लिए उन्हें अपनी वर्तमान अवधि के बाद लगभग 6 साल 183 दिन और इस पद पर बने रहना होगा, यानी 2030 तक का कार्यकाल पूरा करने के बाद भी करीब डेढ़ वर्ष अतिरिक्त मुख्यमंत्री रहना होगा। इसलिए यह रिकॉर्ड तोड़ना मुश्किल जरूर है, लेकिन असंभव नहीं। सूची में शीर्ष 10 नेताओं में पवन चामलिंग, नवीन पटनायक, ज्योति बसु, गेगोंग अपांग, ललथनहवला, वीरभद्र सिंह, माणिक सरकार, एम. करुणानिधि, प्रकाश सिंह बादल और नीतीश कुमार शामिल हैं।
#Bihar #NitishKumar #BiharPolitics

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Posted 4 hours ago

बढ़ती उम्र के साथ ज्यादातर बीमारियों का खतरा बढ़ता है और आम धारणा है कि बुजुर्गों में कैंसर होने की संभावना भी ज्यादा होती है। लेकिन स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी की एक नई स्टडी ने इस सोच को चुनौती दी है। रिसर्च में पाया गया है कि 85 साल की उम्र के बाद कैंसर का जोखिम काफी कम हो जाता है। पहले भी यह देखा गया था कि मिडल एज और बुजुर्गों में कैंसर के केस बढ़ते हैं, लेकिन बहुत अधिक उम्र यानी एडवांस्ड ओल्ड एज में यह खतरा स्थिर हो जाता है या फिर कम होने लगता है। इसी पैटर्न को समझने के लिए रिसर्चर्स ने नई स्टडी की।

स्टैनफोर्ड की स्टडी में क्या मिला?

इस रिसर्च को जेनेटिकली इंजीनियर चूहों पर किया गया, जिनमें KRAS जीन म्यूटेशन डालकर फेफड़ों का कैंसर विकसित किया गया था। स्टडी में दो समूह शामिल थे—

4 से 6 महीने के युवा चूहे

21 से 22 महीने के बुजुर्ग चूहे

नतीजों में पाया गया कि बुजुर्ग चूहों में ट्यूमर की ग्रोथ युवा चूहों की तुलना में 2-3 गुना कम थी।

क्यों कम होता है कैंसर का खतरा?

स्टडी के अनुसार, उम्र बढ़ने के साथ शरीर में कुछ प्राकृतिक जैविक प्रक्रियाएं सक्रिय हो जाती हैं, जो म्यूटेशन के बावजूद कैंसर बनने से रोकती हैं। यानी उम्र भले बढ़े और म्यूटेशन भी बढ़ें, लेकिन एजिंग टिश्यू इन म्यूटेशन को ट्यूमर में बदलने से रोक देते हैं।

रिसर्चर्स ने यह भी पाया कि:

ट्यूमर सप्रेसर जीन युवा चूहों में जल्दी इनएक्टिव हो जाते हैं

लेकिन बुजुर्ग चूहों में यह जीन अधिक सक्रिय रहते हैं, जिससे कैंसर बनने की संभावना कम हो जाती है

वैज्ञानिकों का मानना है कि यह खोज भविष्य में कैंसर ट्रीटमेंट और प्रिवेंशन के नए रास्ते खोल सकती है।

कैंसर रोकथाम पर WHO क्या कहता है?

WHO के मुताबिक, 30–35% कैंसर के मामले पूरी तरह रोके जा सकते हैं। इसके मुख्य कारण हैं:

तंबाकू और शराब का सेवन

हेपेटाइटिस, एचपीवी जैसे संक्रमण

खराब खानपान और मोटापा

वायु प्रदूषण, रेडिएशन और कार्सिनोजेन्स

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Posted 1 day ago

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में अलीनगर सीट से बीजेपी प्रत्याशी मैथिली ठाकुर की जबरदस्त बढ़त उन्हें सुर्खियों में ले आई है। सिर्फ 25 साल की उम्र में राजनीति में उतरने वाली मैथिली को अब देश की उभरती हुई युवा नेताओं की श्रेणी में देखा जा रहा है।

हालांकि, वह पहली ऐसी युवा चेहरा नहीं होंगी जो कम उम्र में विधानसभा पहुंचे हों। भारत में इससे पहले भी कई नेता कम उम्र में विधायक बनकर राजनीति में मजबूत पकड़ बना चुके हैं। आइए जानते हैं—मैथिली ठाकुर से पहले कौन-कौन कम उम्र में विधायक बना।

भारत में कम उम्र में विधायक बनने वाले नेता
1. उमेद सिंह (राजस्थान) — 25 वर्ष (1962)

राजस्थान के बाड़मेर से 1962 में 25 साल की उम्र में चुने गए उमेद सिंह देश के शुरुआती युवा विधायकों में शामिल रहे। बाद में उन्होंने 1980 और 1985 में भी जीत दर्ज की।

2. अरुण वर्मा (उत्तर प्रदेश) — 25 वर्ष (2012)

सुल्तानपुर सदर सीट से सपा नेता अरुण वर्मा 2012 में 25 साल की उम्र में विधायक बने। उन्हें आदर्श युवा विधायक पुरस्कार भी मिला।

3. आदित्य सूरजेवाला (हरियाणा) — 25 वर्ष (2024)

कांग्रेस नेता और वरिष्ठ राजनेता रणदीप सुरजेवाला के पुत्र आदित्य सूरजेवाला 2024 में कैथल से जीतकर हरियाणा के सबसे युवा विधायक बने।

4. मायनमपल्ली रोहित (तेलंगाना) — 26 वर्ष (2023)

तेलंगाना के मेडक से जीतकर 26 वर्ष की उम्र में विधायक बने। उन्होंने पहली बार में ही वरिष्ठ नेता पद्मा देवेंद्र रेड्डी को हराया।

5. रोहित आर. आर. पाटिल (महाराष्ट्र) — 26 वर्ष (2024)

तासगांव–कवठे महांकाल सीट से 26 वर्ष की उम्र में पहली बार विधायक बने।

6. उपासना एल. बी. मोहापात्रा (ओडिशा) — 26 वर्ष (2024)

ओडिशा की ब्रह्मगिरी सीट से उपासना मोहापात्रा 2024 में राज्य की सबसे युवा विधायक बनीं।

7. श्रीकांत जिचकार (महाराष्ट्र) — 26 वर्ष (1980)

20 डिग्रियों के साथ भारत के सबसे शिक्षित व्यक्तियों में गिने जाने वाले जिचकार 1980 में महाराष्ट्र के सबसे युवा विधायक बने। बाद में वे मंत्री भी बने।

8. नरींदर कौर भराज (पंजाब) — 27 वर्ष (2022)

आप पार्टी की उम्मीदवार भराज 2022 में 27 वर्ष की उम्र में विधायक बनीं। उन्होंने कैबिनेट मंत्री विजय इंदर सिंगला को मात दी।

9. के. एम. सचिन देव (केरल) — 28 वर्ष (2021)

केरल के बालुस्सेरी से 2021 में चुने गए और 28 वर्ष की उम्र में राज्य के सबसे युवा विधायक बने।

10. मनसुख मांडविया (गुजरात) — 28 वर्ष (2002)

केंद्रीय मंत्री मांडविया 2002 में 28 वर्ष की उम्र में गुजरात विधानसभा के युवा चेहरों में शामिल हुए।

क्या मैथिली ठाकुर भी 'यंगेस्ट MLA' की लिस्ट में शामिल होंगी?

लोकप्रिय गायिका और सोशल मीडिया स्टार मैथिली ठाकुर 25 साल की उम्र में चुनावी मैदान में हैं। अगर वह जीत दर्ज करती हैं, तो वह देश की सबसे युवा विधायकों में शामिल हो जाएंगी।

उनकी लोकप्रियता, डिजिटल मौजूदगी और युवाओं में मजबूत अपील को देखते हुए माना जा रहा है कि मैथिली आने वाले वर्षों में बिहार की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं।

#MaithliThakur #BJP #Bihar

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Posted 3 days ago

दोस्तों,

आज हम लेकर आए हैं एक नया पॉडकास्ट जिसका आप सभी को बेसब्री से इंतज़ार था…

ज्योतिषाचार्य शैलेंद्र पांडे बताएंगे आपको ऐसी बातें जो तार्किक हैं और आपकी ज़िंदगी से गहराई से जुड़ी हुई हैं।

देखिए भावना शर्मा की खास बातचीत शैलेंद्र जी के साथ — आज शाम 7 बजे, सिर्फ़ Travel Junoon पर! 🎙️✨

#shailendrapandey #bhawnasharma #astrologytalk #lifeguidance #traveljunoon

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Posted 3 days ago

गाँव अक्सर हमें आश्चर्य चकित करते रहे हैं, आज भी कुछ ऐसा ही हुआ…

आज तक एक ब्रेड के पीस से दो पकौड़े बनते देखा था, लेकिन एक पीस से 4 पकौड़े बनते पहली बार देखा, वो भी एक गाँव में…

यहाँ तली हुई मिर्च और कुल्हड़ की चाय भी थी…

तस्वीर एक गाँव की है

#village #food #dhaba #chai #tea #india #villagelifestyle

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Posted 1 week ago

काशी (जिसे वाराणसी या बनारस भी कहा जाता है) भारत की सबसे प्राचीन और पवित्र नगरी मानी जाती है। यह उत्तर प्रदेश राज्य में गंगा नदी के किनारे स्थित है और इसे भगवान शिव की नगरी कहा जाता है। कहा जाता है कि काशी वह स्थान है, जहां स्वयं महादेव सदा विराजमान हैं, और यहां मृत्यु को मोक्ष का द्वार माना जाता है।

काशी का सबसे प्रमुख धार्मिक स्थल है काशी विश्वनाथ मंदिर, जो बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यहां हर दिन हजारों भक्त दर्शन के लिए आते हैं। गंगा आरती का दृश्य अस्सी घाट और दशाश्वमेध घाट पर मन मोह लेने वाला होता है — जहां दीपों की रौशनी और मंत्रोच्चारण से पूरा वातावरण आध्यात्मिक हो जाता है।

इसके अलावा काशी में सारनाथ नामक स्थान बौद्ध धर्म का प्रमुख तीर्थ स्थल है, जहां भगवान बुद्ध ने अपना पहला उपदेश दिया था। शहर में रामनगर किला, मणिकर्णिका घाट, तुलसी घाट, और काशी हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) जैसी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक जगहें भी हैं।

काशी सिर्फ एक शहर नहीं, बल्कि एक जीवंत आध्यात्मिक अनुभव है — जहां धर्म, संगीत, साहित्य और जीवन का गहरा दर्शन एक साथ मिलता है। यहां का हर घाट, हर गली और हर मंदिर इतिहास और भक्ति की कहानी कहता है।

#kashi #varanasi #PMModiji

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Posted 1 week ago

भारत का राष्ट्रगीत ‘वंदे मातरम’ (Vande Mataram) देशभक्ति और मातृभूमि प्रेम का प्रतीक माना जाता है। इसकी रचना कवि और उपन्यासकार बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय (Bankim Chandra Chattopadhyay) ने 7 नवंबर 1876 को बंगाल के कांतलपाड़ा गांव में की थी। यह गीत पहली बार 1896 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में गाया गया था — यानी आज़ादी से पूरे 51 साल पहले। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान ‘वंदे मातरम’ ने लोगों में जोश और एकता का संचार किया और अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ एक सशक्त नारा बन गया। इस गीत को रबींद्रनाथ टैगोर (Rabindranath Tagore) ने स्वरबद्ध किया था। वर्ष 2025 में ‘वंदे मातरम’ के 150 साल पूरे हो रहे हैं, और इस उपलक्ष्य में सरकार ने देशभर के 150 स्थानों पर विशेष कार्यक्रमों के आयोजन की घोषणा की है। इस अवसर पर देश के कोने-कोने में यह अमर गीत फिर से गूंजेगा, जो हर भारतीय के हृदय में मातृभूमि के प्रति प्रेम और गर्व की भावना जगाता है।
#VandeMataram150 #VandeMataram #vandemataramsong

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Posted 1 week ago

मधेपुरा बिहार राज्य के कोसी मंडल में स्थित है। इसके चारों ओर सहरसा, सुपौल, पूर्णिया और अररिया जिले हैं। यह कोसी नदी के नजदीक बसा हुआ है, इसलिए यह क्षेत्र “कोसी क्षेत्र” के नाम से जाना जाता है।
शैक्षणिक पहचान:
मधेपुरा में स्थित भूपेन्द्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय (BNMU) बिहार के प्रमुख विश्वविद्यालयों में से एक है, जिसका नाम स्वतंत्रता सेनानी भूपेन्द्र नारायण मंडल के नाम पर रखा गया है।
रेल इंजन फैक्ट्री
मधेपुरा भारत की सबसे बड़ी और अत्याधुनिक इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव फैक्ट्री के लिए प्रसिद्ध है, जहां फ्रेंच कंपनी Alstom के सहयोग से 12,000 हॉर्स पावर के इलेक्ट्रिक इंजन बनाए जाते हैं। यह फैक्ट्री भारत के रेलवे नेटवर्क को आधुनिक बना रही है।
कोसी नदी का प्रभाव
कोसी नदी, जिसे "बिहार का शोक" भी कहा जाता है, मधेपुरा के जीवन और अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव डालती है। यहां बाढ़ की समस्या अक्सर रहती है, लेकिन इसी नदी ने इस क्षेत्र को उपजाऊ भी बनाया है।
प्रसिद्ध व्यक्तित्व
मधेपुरा कई नामचीन हस्तियों की जन्मभूमि है, जिनमें शरद यादव (पूर्व केंद्रीय मंत्री) और भूपेन्द्र नारायण मंडल (समाजवादी नेता) शामिल हैं।
आर्थिक जीवन
यहां की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि पर आधारित है। धान, मक्का, गेहूं और गन्ना प्रमुख फसलें हैं।
धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
मधेपुरा में कई धार्मिक स्थल हैं जैसे सिमरिया धाम, सहजगिरी स्थान, और काली मंदिर, जो स्थानीय लोगों की आस्था के केंद्र हैं।
मौसम
यहां गर्मियां काफी गर्म और सर्दियां ठंडी होती हैं। मानसून के दौरान कोसी क्षेत्र में भारी वर्षा होती है।
परिवहन सुविधा:
मधेपुरा सड़क और रेल मार्ग से बिहार के प्रमुख शहरों जैसे पटना, भागलपुर, कटिहार और पूर्णिया से जुड़ा हुआ है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
मधेपुरा कभी मिथिला साम्राज्य का हिस्सा था और यहां की संस्कृति आज भी मैथिली परंपरा से गहराई से जुड़ी हुई है।
#MadhpuraBiharfacts #Madhpura #touristplacesinMadhepura

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Posted 1 week ago

Doston, Aaj Dekhiye Chambal par Hamara New Video... Isme aapko Chambal ki dacoit history jaanne ko milegi... Humne iss podcast mein ek renowned journalist se baat ki hai...

milte hain aaj sham 6 baje Travel Junoon par...

#chambal #dacoit #paansinghtomar #madhosingh #moharsingh #travel #instatravel #fbtravel #history #facts

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Posted 1 week ago

बिहार के कैमूर जिले की पवरा पहाड़ी पर स्थित मां मुंडेश्वरी धाम मंदिर देश के सबसे प्राचीन जीवित मंदिरों में से एक माना जाता है। लगभग 600 ईसा पूर्व से अस्तित्व में यह मंदिर देवी मुंडेश्वरी को समर्पित है, जिन्हें शक्ति की प्रतीक देवी माना जाता है। मंदिर की सबसे अनोखी परंपरा यह है कि यहां बकरी की बलि बिना खून बहाए दी जाती है — बकरे को मां के चरणों में लिटाकर प्रतीकात्मक रूप से अक्षत से प्रहार किया जाता है और कुछ देर बाद वह खुद उठ खड़ा होता है। अष्टकोणीय आकार में बना यह प्राचीन मंदिर अपनी स्थापत्य कला और रहस्यमयी वातावरण से भक्तों को आकर्षित करता है। मंदिर तक पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को 526 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं, हालांकि सड़क मार्ग से भी पहुंचा जा सकता है। नवरात्रि के समय यहां हजारों की संख्या में भक्त दर्शन के लिए आते हैं। यहां भभुआ रोड रेलवे स्टेशन सबसे नजदीक है, जबकि हवाई मार्ग से आने वाले श्रद्धालु वाराणसी या पटना एयरपोर्ट के जरिए यहां पहुंच सकते हैं। मां मुंडेश्वरी का यह धाम आस्था, रहस्य और अद्भुत परंपराओं का प्रतीक है।

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