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प्रभु तुम्हारे छत जो नहीं थी मन व्याकुल हो जाता थातुम्हे देख आकाश के नीचे आंखों आंसू आता थाहे पुरुषोत्तम आज जो तुमने अपने धाम को पाया हैसमझ सको न मन में मेरे क्या आनंद समाया हैराघव तुमको लाने अयोध्या कितने सेवक बैकुंठ हुएसफल हुआ बलिदान अब उनकातुम जो प्राण
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