सृष्टि कथा (The Story of Creation)
(वार्षिक कार्यक्रम—श्री वैदिक स्वस्ति पन्था न्यास)
📆 दिनांक— 14, 15 व 16 नवम्बर
(शुक्रवार, शनिवार एवं रविवार)
सादर नमस्ते जी, आपकी सेवा में निमन्त्रण-पत्र भेज रहे हैं, कृपया डाउनलोड करने का कष्ट करें—
📰tinyurl.com/Srishti-Katha
📽https://youtu.be/OT90PcDCXXw
पंजीकरण करने के लिए लिंक—
🔗 tinyurl.com/srishtikatha
📍 स्थान—
श्री विजयपताका महातीर्थ, सिरोही
अधिक जानकारी के लिए सम्पर्क करें—
☎ 9829148400
सहयोग करें—
1. PhonePe - 9829148400
2. UPI - 9829148400@upi
3. donate.vaidicphysics.org/
225 - 0
🌸 भारतीय आर्य पर्व विजयदशमी की सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ 🌸
🔥 यह पावन पर्व हम सभी भारतीयों 🇮🇳 तथा हमारे सभी राजनैतिक दलों को—
👉 जातिवाद (आरक्षण व छुआछूत) ❌
👉 भाषावाद ❌
👉 क्षेत्रवाद ❌
👉 भाई-भतीजावाद ❌
👉 सत्ता लोलुपता ❌
👉 भ्रष्टाचार ❌
👉 अलगाववाद ❌
👉 गोहत्या ❌
...आदि पापों से मुक्त होने की प्रेरणा दे। ✨
आज देवता स्वरूप श्रीमान् लाल बहादुर शास्त्री जी (पूर्व प्रधानमन्त्री) की जयंती पर उन्हें विनम्र नमन। 💐
🌺 ईश्वर से प्रार्थना है कि वे हमारे वर्तमान राजनेताओं को शास्त्री जी से प्रेरणा लेकर उनके पदचिह्नों पर चलने की सद्बुद्धि प्रदान करें।
🚩 जय हिन्द! विजयदशमी मंगलमय हो! 🚩
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हिन्दुओं को सनातन धर्म के एक आचार्य की खरी-खरी
https://youtu.be/JX8mohfhHYw
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264 - 3
जो कोई इस शिविर में भाग लेना चाहे, वे पोस्टर में निर्दिष्ट फोन नम्बर पर सम्पर्क करें, स्थान सीमित हैं।
484 - 16
वैदिक विज्ञान के विरुद्ध षड्यन्त्र
कुछ विश्वसनीय सूत्रों से ज्ञात हुआ है कि कुछ वेद-विरोधी और वेद से अनभिज्ञ तथाकथित ‘विद्वान्’ अपने शिष्यों और अनुयायियों को माध्यम बनाकर ‘वैदिक रश्मि विज्ञान’ तथा इस संस्थान के प्रमुख आचार्य अग्निव्रत जी के प्रति लोगों में शंका और भ्रम फैलाने का षड्यन्त्र कर रहे हैं। कोई कहता है कि इनके पास कोई शैक्षणिक योग्यता नहीं है, कोई इनके ग्रन्थों को काल्पनिक बताता है। कई लोग गुप्त वा प्रकट रूप से नाम बदलकर लेख और वीडियो बनाकर यह दुष्प्रचार कर रहे हैं। इस कारण संस्थान के अनेक दानदाता भ्रमित होकर दूर हुए हैं, जिससे आर्थिक क्षति भी हुई है।
उधर आचार्य जी गोपथ ब्राह्मण के वैज्ञानिक भाष्य, अन्य एक विशिष्ट ग्रन्थ-लेखन और प्रचार जैसे कार्यों में व्यस्त रहते हैं, इसलिए ऐसे निराधार आरोपों का व्यक्तिगत उत्तर देना उनके लिए सम्भव नहीं हो पाता। परिणामस्वरूप वैदिक विज्ञान तथा आचार्य जी के कुछ समर्थक भी भ्रान्त हो जाते हैं। समयाभाव के कारण हम अपने निकट सम्बन्धियों और समर्थकों से भी सतत सम्पर्क नहीं रख पाते। इसी कारण सभी वेद-विज्ञान प्रेमियों और दानदाताओं से निवेदन है कि यदि कोई व्यक्ति इस प्रकार की टिप्पणी करता है वा आपसे दूरभाष या अन्य किसी माध्यम से ऐसी चर्चा करता है, तो उससे केवल ये चार प्रश्न पूछें—
1. क्या उसने ‘वेदविज्ञान-आलोक:’, ‘वेदार्थ-विज्ञानम्’ अथवा ‘वैदिक रश्मिविज्ञानम्’ आदि ग्रन्थ पढ़े और समझे हैं? यदि हाँ, तो किस पृष्ठ पर किस बात पर आपत्ति है? कृपया वह पृष्ठ ईमेल करें— info@vaidicphysics.org
2. क्या वह ऐतरेय ब्राह्मण और निरुक्त जैसे आर्ष ग्रन्थों का आचार्य जी के भाष्यों के अतिरिक्त कोई ऐसा भाष्य दिखा सकता है, जिसमें पशुबलि, नरबलि, मांसाहार, छुआछूत, अश्लील वा मूर्खतापूर्ण प्रसंग न हों?
3. क्या वह इन ग्रन्थों का आचार्य जी के भाष्यों के अतिरिक्त कोई ऐसा भाष्य प्रस्तुत कर सकता है, जो आधुनिक विज्ञान से उच्च स्तर का हो या कम से कम उसके समकक्ष हो?
4. यदि सम्पूर्ण संसारभर में ऐसा भाष्य प्रस्तुत नहीं किया जा सकता, तो क्या वह निन्दक स्वयं इन दोनों ग्रन्थों का वैज्ञानिक भाष्य (जो सभी प्रकार के पापों से मुक्त हो) कर सकता है? यदि सम्पूर्ण ग्रन्थ का भाष्य न कर सके, तो क्या वह कुछ अंश (जो यह संस्थान उसे प्रस्तुत करेगा) का निर्दोष एवं वैज्ञानिक भाष्य कर सकता है वा जिनको वह विद्वान् मानता है, उनसे करवा सकता है?
यदि वे चारों प्रश्नों का उत्तर नहीं दे सकते, तो उनसे पूछें— वे ‘वैदिक रश्मि विज्ञान’ की निन्दा किस उद्देश्य से कर रहे हैं? किसके संकेत पर और किस लोभ से वे वेद-विज्ञान के गौरव को झुठलाने का कुत्सित प्रयास कर रहे हैं? इन चार प्रश्नों से ही सबको वास्तविकता का ज्ञान हो जायेगा और स्पष्ट हो जाएगा कि सत्य किस ओर है।
जो कोई शोधपत्र लिखने व विज्ञान की पत्रिकाओं में प्रकाशित करने की बात करें, उनसे पूछें— शोधपत्रों की परम्परा विदेशी है या स्वदेशी है? ऋषि दयानन्द ने कितने शोधपत्र लिखे? ऋषियों की परम्परा गम्भीर ग्रन्थ लिखने की रही है, उसे आचार्य श्री ने निभाया है। ऋषियों ने कोई शोधपत्र/रिसर्च पेपर नहीं लिखे, फिर भी उनका ज्ञान आज भी अमूल्य है। सभी ऋषि वेद की ऋचाओं पर ही चिन्तन व अनुसंधान किया करते थे। जिस किसी को अपनी विद्वत्ता का अभिमान हो, वह ‘वेदविज्ञान-आलोक:’ व ‘वेदार्थ-विज्ञानम्’ ग्रन्थों के एक अध्याय को ही समझकर अपनी परीक्षा कर ले और यदि वह इन ग्रन्थों को न पढ़ना चाहे, तो विधर्मियों द्वारा वेद आदि शास्त्रों पर किया गए आक्षेपों का उत्तर ही दे देवे।
यदि कोई व्यक्ति योग्यता को केवल डिग्री से मापता है, तो यह उसकी बौद्धिक दासता का प्रमाण है। इतिहास साक्षी है कि बिना किसी औपचारिक डिग्री के भी अनेक प्रतिभाशाली व्यक्तियों ने ईश्वर-प्रदत्त बुद्धि और प्रयास के आधार पर अद्भुत अनुसंधान किए हैं। वैज्ञानिकों में ऐसा संकीर्ण दृष्टिकोण देखने को नहीं मिलता। उन्होंने कभी आचार्य जी से नहीं पूछा कि आपकी क्या योग्यता है, बल्कि वे सदैव मित्रवत् रहते हैं और जिज्ञासु बनकर सीखना चाहते हैं। किसी ने ठीक ही कहा है— अधजल गगरी छलकत जाए। विद्या से यदि विनम्रता नहीं आई, छल-कपट-ईर्ष्या-द्वेष नहीं मिटा, तो ऐसी विद्या वास्तव में विद्या ही नहीं है और ऐसा विद्वान् भी विद्वान् कहलाने योग्य नहीं है।
कुछ लोग कहते हैं कि आचार्य जी ने गुरु चरणों में बैठकर अध्ययन नहीं किया। उनसे पूछें कि जिन्होंने गुरु चरणों में बैठकर अध्ययन किया, उन्होंने संसार को अब तक क्या दिया? कितने आर्ष ग्रन्थों को उन्होंने समझ लिया? क्या व्याकरण का उद्देश्य केवल व्याकरण पढ़ना-पढ़ाना भर रह गया है अथवा उसके आधार पर वेदादि शास्त्रों को समझना और उन पर अनुसंधान करना भी है? क्योंकि व्याकरण वेदादि शास्त्रों को समझने के लिए मात्र एक साधन है। अब जरा विचारें कि वेद का पढ़ना-पढ़ाना और उस पर अनुसंधान करके उसे सत्य विद्याओं का ग्रन्थ सिद्ध करने का कार्य कौन कर रहा है?
आर्यो! चिन्तन करें कि यदि वेद और ब्राह्मणादि ग्रन्थों का वास्तविक (वैज्ञानिक) स्वरूप संसार के सामने नहीं लाया गया, तो व्याकरण पढ़कर हम क्या करेंगे? जब हम इन ग्रन्थों के आधार पर संसार को कुछ दे ही नहीं सकते, तब इनका अध्ययन-अध्यापन व्यर्थ है।
आज सम्पूर्ण संसार में असुरों द्वारा वैदिक विज्ञान को मिटाने का प्रयास हो रहा है। आधुनिक विज्ञान के पोषक वामपन्थी नहीं चाहते कि हमारे ऋषि-मुनियों का ज्ञान-विज्ञान आगे बढ़े और भारत पुनः विश्वगुरु बने। दूसरी ओर तथाकथित विद्वान् शास्त्रों पर अनुसंधान जैसा कठिन मानसिक श्रम नहीं करना चाहते और इससे बचने के लिए वे कह देते हैं कि वेद, ब्राह्मण आदि आर्ष ग्रन्थों में कोई विज्ञान नहीं है, जो इन पर अनुसंधान करने का प्रयास करता भी है, तो उसका विरोध करने का कोई अवसर नहीं खोते। यही कारण है— वेदों और आर्ष ग्रन्थों की दुर्दशा का। कभी अंग्रेज कहा करते थे कि वेद गडरियों के गीत हैं, उनका उद्देश्य हमारे आत्मविश्वास व प्राचीन गौरव को तोड़ना था। दुर्भाग्य से वैसा ही प्रयास आज ये तथाकथित विद्वान् और उनकी शिष्य/भक्त मण्डली कर रही है, तब उन वामपन्थी, ईसाई, मुस्लिम, यहूदी, बौद्ध आदि में तथा इन वेद विज्ञान विरोधी तथाकथित विद्वानों में क्या अन्तर है?
यह निश्चित है कि यदि वेद और ब्राह्मणादि ग्रन्थों का वास्तविक अर्थात् वैज्ञानिक स्वरूप, जो सर्वकालिक, सार्वभौमिक और सार्वजनीन है, दुनिया के सामने प्रस्तुत नहीं किया गया, तो उन्हें पढ़ने का कोई लाभ नहीं और जब उन्हें पढ़ने का लाभ ही नहीं है, तो केवल व्याकरण पढ़ना भी निरर्थक है, जो मात्र कर्मकाण्ड और अध्ययन-अध्यापन तक सीमित रह जाता है। यदि ऋषियों ने भी अपने आप को व्याकरण तक सीमित कर लिया होता, व्याकरण के अतिरिक्त किसी आर्ष ग्रन्थ की रचना ही न की होती और आर्यावर्त कभी जगद्गुरु न कहलाता।
अन्त में ईश्वर से यही प्रार्थना है कि ऐसे निन्दकों को सद्बुद्धि दे, जिससे वे वेद-विरोधी अभियान चलाकर और पाप न अर्जित करें।
—अभिषेक आर्य, कोषाध्यक्ष
श्री वैदिक स्वस्ति पन्था न्यास,
भागलभीम, भीनमाल (राज.)
691 - 28
कुछ दिनों पूर्व हमारा फिल्म सिटी नोएडा में एक पॉडकास्ट के लिए जाना हुआ। ग्रेटर नोएडा निवासी प्रिय श्री कुशाग्र गौड़, वेब डिवेलपर (kushagra.dev/) एवं प्रिय श्री पराग गौड़, संचालक, प्रकृति नूतनवन्न गौसदन (prakriti.care/) के आवास पर रुकने का अवसर मिला। इन दोनों भाइयों के आग्रह पर हम अपनी यात्रा में इनके आवास पर रुके। पहासू (बुलन्दशहर) के निकट इनकी अपनी गौशाला व प्रकृति नामक पंचगव्य औषधिशाला है। इसमें देशी गाय का दही बिलोकर बनाया गया शुद्ध गोघृत, बैल के कोल्हू से निकल गए सरसों, तिल, नारियल आदि के शुद्ध तेल सहित च्यवनप्राश, पंचगव्यघृत, कई प्रकार के अर्क आदि 35 प्रकार की औषधियाँ मिलती हैं।
इनके आवास पर इन्हीं शुद्ध खाद्य पदार्थों से हमारा श्रद्धोपेत हृदय से आतिथ्य किया गया। इनके माता-पिता व सम्पूर्ण परिवार में हमने वैदिक विज्ञान के प्रति गहरी जिज्ञासा के साथ-साथ अतिशय श्रद्धा देखी। ईश्वर इस वैदिक परिवार को सदैव सुख-समृद्ध, उत्तम स्वास्थ्य प्रदान करने के साथ-साथ वैदिक आदर्शों पर चलने की शक्ति प्रदान करे, यही कामना है।
1K - 23
जयपुर के हल्दीघाटी मार्ग पर स्थित होटल ‘रामा हिन्दुस्तानी’ (maps.app.goo.gl/XteBj8YmKVmPFuvQA । Call/WhatsApp: 7300094220 । 9782937498) में कई बार हमारा रुकना हुआ। इस होटल के संचालक श्री मुकेश शर्मा एवं श्री सौरभ ठाकुरिया (संस्थापक Voice Coach—voicecoach.in/) हैं। इस होटल पर शुद्ध सात्विक भोजन देखकर यह अनुभव ही नहीं होता कि हम किसी होटल में भोजन कर रहे हैं। शुद्ध फिल्टर तेल एवं शुद्ध मसालों का प्रयोग हमने इसी होटल में देखा है, जहाँ अपने घर में भोजन जैसा ही अनुभव होता है। यदि सभी होटल इसी प्रकार की गुणवत्ता व शुद्धता का ध्यान रखें, तो किसी को होटल के भोजन से कोई समस्या नहीं होगी। ईश्वर इस होटल के संचालकों की इसी भावना को स्थायी बनाए रखे, यही कामना है।
938 - 13
Bridging Ancient Wisdom with Modern Science
DAKSHI presents a special lecture:
Unlock the Secret of the Universe with Vaidik Physics and Its Contemporary Relevance
Speaker: Acharya Agnivrat
Founder Chairman, Vaidic & Modern Physics Research Centre
This lecture will explore how the ancient wisdom of the Vedas aligns with modern physics. Participants will gain insights into cosmology, creation, and natural laws, and understand how these timeless principles can inspire innovative approaches in modern science.
Event Details:
Date: 7th September 2025
Time: 6:00 PM
Platform: Google Meet
Google Meet Link: meet.google.com/abp-hatx-mjh
This session is ideal for scientists, students, researchers, and seekers of knowledge who wish to explore how ancient wisdom can illuminate modern scientific discovery.
395 - 8
क्या हमने ऋषि की बात मानी? करें आत्मनिरीक्षण...
https://youtu.be/0vLjGCd5Eio
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214 - 1
"मैं वैदिक विज्ञान के द्वारा एक अखण्ड, सुखी व समृद्ध भारत के निर्माण की आधारशिला रखने का प्रयास कर रहा हूँ, जिसमें प्रत्येक भारतीय तन, मन, विचारों व संस्कारों से विशुद्ध भारतीय होगा। उसके पास अपना विज्ञान वेदों, ऋषियों व देवों के प्राचीन विज्ञान पर आधारित एवं अपनी भाषा हिन्दी व संस्कृत में होगा। उसे अपने पूर्वजों की प्रतिभा, चरित्र एवं संस्कारों पर गर्व होगा, उसे पाश्चात्य विद्वानों की बौद्धिक दासता से मुक्ति मिलेगी, जिससे लार्ड मैकाले का वर्तमान में साकार हो चुका स्वप्न ध्वस्त हो सकेगा। यह प्यारा राष्ट्र पुनः विश्वगुरु बनकर विश्व को शांति एवं आनंद का मार्ग दिखाएगा।"
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