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सर सय्यद के क़ौल।
ए मेरी क़ौम के लोगों
अपने अज़ीज़ और प्यारे बच्चों को ग़ारत ना करो उनकी अच्छी परवरिश करो उनकी आइंदा ज़िंदगी अच्छी बसर होने का सामान करो मुझको तुम कुछ भी कहो मेरी बात सुनो या ना सुनो मगर याद रखो के अगर तुम ऐक क़ौमी तालीम के तौर पर उनको तालीम ना दोगे तो वो आवारा और ख़राब हो जायेंगे। तुम उनकी अब्तर हालत को देखोगे और बेचैन होओगे, रोओगे, और कुछ ना कर सकोगे। तुम अगर मर जाओगे तो अपनी औलाद की ख़राब ज़िंदगी देखकर तुम्हारी क़बरों में तुम्हारी रूहें तड़पेंगीं और तुम से कुछ ना हो सकेगा। अभी वक़्त है और तुम सब कुछ कर सकते हो। मगर याद रखो के मैं पेशीनगोई करता हुं के चंद रोज़ तुम इस तरह ग़ाफ़िल रहे तो ऐक ज़माना एैसा आयेगा के तुम चाहोगे के अपने बच्चों को तालीम दें उनकी तरबियत करें मगर तुमसे कुछ ना हो सकेगा। मुझको कुछ भी कहो काफिर, मुल्हिद, नेचरी, मैं तुमसे अपनी शफाअत के वास्ते ख़्वास्तगार ना होऊंगा। मैं जो कुछ भी कहता हुं तुम्हारे बच्चों की भलाई व बेहतरी के लिये कहता हुं। तुम उन पर रहम करो ताकि आइंदा पछताना ना पड़े।
(सर सय्यद का २३ जनवरी १८८३ को लुधियाना में किया गया ख़िताब)
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